पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१५२

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१५ धिपि । [ ५० १०१ ना: मन्य । मरि वा पृषभानु पो भार वा ज्ञषता है । ६ प्रपदी तुही पबिंदप जू घुमट ६ फ्नि ३ तानी मा ।।। टत संवाद भटू बेहि माग्न मान दी प ध में इफ्त है । कष्ट भयो ६ कहा पहा पैसी र कान्द कई हैं या घषती ti Ir अन्तर टि दुवै पट में कवि ६ निरन्तर ता उर आने । देति मिलाय घने अपने गुन चाम् सुई विधा ही सुशान ।। तादि लिये कर में घरमै दिय जासु सियं मरम ले पाने । की फरेशन की दर दृरज्ञी की यह घर भ”ि भने । मूद कई मर के फिरि पाइये घ ३ टरिय भान भर का ! हैं पले घेाय विस्थाढ़ प्ररे अयर सुन्या कहूँ द्वार परे । नीपत शी घत नेम भुत सरीर मा सुर मुन्न र हेर । पैसा असाधु असाधुन फी मति साधन देत संघ मरे । । बत पागु का देस अधीत गये रवि यी अँधियारिये है । दाम पर है शरीद करी गुर माह की गेनी न फेरि ब्रि६ ॥ देव छितीस की छाप विना अमराज जगा महा दुग्न ६६ ।। जात इट्टी पुर देह की पिठ अर वनयै चनियै नहि ६६ ॥ मैहि तुम्हे अन्तर' ने न गुरु जन तुम मेरे हैं तिहारी १ तऊ न पियत । | पूरिः डे या तन के मन में न आयत हैं। पंच ङि वैने कहूं काहू न हिलत हो । ऊँच चदि राई काई देत न घेखाई • देव गातुन फी मेट घेॐ बोतन मिळत हैं ।