पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१५३

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८ ६ पूलित कर ।' ऐसे निरमाही महा मैाही में असत् । अरु माही ते जैकसि फिर माही न मिलत है | | (५३४) छ्त्रासिंह कोश्य । इन्होंने संपत् १७५७ में विजयमुक्तावली नामक अन्य अनेक छन्दों में लगाया । ये महाशय अटेर गाँव के रहने पालै श्रीवास्तव कायय थे | पर ग्वालियर के भदायर नामक देश में हैं । छत्र ने लिखा है कि मटेश्चर क्षेत्र वहाँ से निकट है । इनके माश्रयदाता कल्याणसिंह' अमरावती में रहते थे। जियमुकाधली में महाभारत की कथा सुश्मनय चरित हैं, परन्तु इस कवि ने बहुत स्थान पर संस्कृत फी कथा से भिन्न अपमा क़धा कहीं पैर केरित दल के दामों को महत्व कई अंशों में बहुप्त घटा वर कहा । कथी घन करने वाले याविरों में इनका पद अच्छा है। इन्हों ने केशवदास की परिपा) का अनुसरण कियाँ र मायः रायल अठपेना के धा सा पृ के मुन्थ का एक रस निवड पर दिया । इनकी भाषा में मुद्द्यांश ग्नज्ञ झापा का है, .. । ॐ साक्षरिततया अयों हैं। इन्ने बहुत थाने पर भद्ः काग किया है और इनफा ग्रन्थ बहुत रोचक है। उदाहरणार्थ इनके कुछ छन्द' नीचे इत किये जाते हैं। वैटभ मघ मुर इरन धरन नेत्र अन्न शैल बर।। हिरनाफुश दिनाझ इन प्रभु हम धराने घर । | संसासुर सँहरन इरन र संघ कर्वधईि। .' मरहून दाधु भनि गंज भेजन दसकंधा ।