पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१५७

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येतात ] पूलिंकृत प्रकरण । यो भिधि मैाइन दरस की दीनी चाट् बढ़ाये । य इन भी दृगन के दिन पंख लगासि ।। धरत जहाँ मैंद लाडली बरन कम सुन्न पुंज । गर्पिन के दृग नँबर ३ करत फिरत तर्दै शुज ॥ रलनिधि आवत ज्ञान के मन मैहन मद्ददूव ।। डर्मा दाङ बनोन की इगनि बधाई इच॥ । इनके ग्रन्थ थे हैं—(१) वि गढ़ मान कीसैन, (२) फवित्त, . | (३) चारहमास, (४) गीतसंग्रह. (५) स्फुट है।हा, (६) सनिधि की कविता, (७) रसनिधि की कविता, (८) रक्तनिधि के दाई, | (९) पिप्या पद, (१०) अरिल्ल, (११) कसि , (१२) हिंडारा, (१३) देहा, (१४) रसनिधिसागर ।। १५३६) वेताल कुन्ज न । ठाकुर शिपसिहं सेंगर में इनका जन्मकाल संवत् १९३४ मनि है और यह भी लिखा है कि ये महाशय चिफम झाडू के दरवार में थे। यत्तु कथन यथार्थ गी है, क्योंकि इन्हों ने अपने सब छन्द चिकन के सम्बोधन करके कहे हैं। इनके किसी ग्रन्थ का नाम में छात्र नहीं है, परन्तु स्फुट छ्यय पर मिले हैं। वैताछ कयि ने गरि रस पर एक भी इन्द न बना कर विविध विषयों पर रचना की है। इन्होने अधिकतर नीति, फद्दी को पछी पैर क गर्दै भी, चुप, पूर्व पैसैदी ऐसे अन्य विपी पर कविता की। एक स्थान पर इन्होंने यह भी कया कि अब तो पेसा बुरा समय अाया कि माधो, मल्लाह, भड़भूग, पाव, नाई आदि समी के कवित्त पढ़ने लगे। इनके