पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१५९

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सुभग । पूर्वाञ्चत अकरण । वैशाह ] १७७ तज्ञ भाभि टि एकत्र कर वाँट सहारे तालिम् । चेताछ कहें चिकम सुनी बभि सँभारे बेलिए ॥ १ ॥ ९ फुल मूळ दृको भिरदंग साचै । चढ़े सुखपाल टका सिर छत्र धरावे ]

  1. Air माय अरु वाँग टका भान के भय ।

३ टका सासु अरु ससुर का सिर लाए डैया ॥ अब एक एक दिनु फटफा हात रसुत गित राति दिन । बेताल मई वि। सुना भिक जीवन जग के विन ३ ३॥ मर' घेछ गरियर म यह मंद्रियल डू। मरे फरकसी नारि मरे ब्रह् खग्रम निस६ ॥ भन भी मरि जाय द्वाय ॐ मदिरा प्या) पूत चढा भरिजाय जु फुछ में दाग लगावे ॥ अक वे नियवि राजा मई तये नोंद भरि साइए। चेताछ कहे चिकम सुना ते मरे न देइ५ ॥ ३ ॥ राजा साल ये मुलुक सर फरि छान्ने । पति चंचल होय सभा उत्तर में आये ।। हाथी चंचल होय समर में होड उठाई। घडिॉ अंचल हाय झपाटे मेदाम दिनाचें ॥ में ये सारा यंदेह भले राया, पंडित, मन, तुरी । चैतह कई विम सुना तिरिया चंचल अति बुरी 11 ४। दय अष्ट गई धरम ६ सि गया धरम में। पुन्य गया पानाल पाप भो घरन -* ॥ ।