पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६२

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मिन्द ! उदाहरण । रथ पर राजस रघुपर राम ।। फीट मृट सिर धनुष धान कार सेमि फंदिन कामे ॥ श्याम गात वैसरिया भने सिर पर मार ला ! वैजन्ती मन माल से उर पदिफ मध्य अभिराम । मुन्न मर्यफ सरसीरुद्द लेाचन हैं ये के सुश धाम । झल अलक अतन में भान दुई दिसि टी स्याम ॥ कन्छ कंठ मातिन की माला किन काट दुति हाम।। रस माड़ा यह रूप रसिक चर कर दिये अभिराम ।। झुकी लता गुम हार भूमि परसत सम्म गर्मी ।। भनटु भये इम लता इहां के तीरथ बीती 14 वीड़ उद्धि परति विहार थली की अंग र तिन के ! लगे सुभेग फल गुच्छ नयल दल पर हित जिन के । इनकी कविता परमात्तम हैं। हम इन नेपि फी ध्र में समझते हैं। नाम-(५४३) सन्तम प्रहार पाटे जाजमऊ अभाव वाले। उत्पत्तिकाल-१७२८। कविता-काल-१७६० । चिघर--साधारय में । इनक्रा बनाया हुआ एक छन्द यहां श्रुत किया जाता है। मैं धन देत लुटाय भिमरिन मैं परिपूरन दानि गहू फै। मैं चिन३ म्बिस जुस से अयं बाई वियर अकङ्ग ३ ॥