पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६३

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नेहन भट्ट ! गूर्वालंकृत पाए । ११ ६ एपमन्यु दुवै जग जाहिर पाँई वनस्थी के थे मध के। मैं कवि सन्तन ६ देंदुकी हम है कवि सन्तान जमऊ के || नाम-(५४४) सतनदुबे में दुफी ।। उतान्ति काल-१७३८ । कपिता-काल-१७६०। बियर–धारण में गी के कवि थे। सेतन जाजमऊ वाले ने इमको चर्गन अपने उपरोक्त कवित्त में किया है। (५४ ५) मोहन भट्ट । यै माय ददानिघाली कचि पद्माकर के पिता थे। इन का हाल पदाकरः वाले लेख में मिलेगा | इन्होने भए कता की पर, अनुज्ञास ना समादर अझ किया। सम इन्हैं, साधारण श्रेणी | में रचेगे। इरिए । दावि दल भित्रन सु सिक्न समेत दोई लीन्हें चेगि पझरि दिर्लस दलनि में। झम हिलान खुरासान हवसान तचे तुरुक तमाम सके हैन तलनि में 11 मोहून मना ये बिलाशति नरेश ताहि सेर इतनेस शैरि न्याय सहन में 1 जैदि अंगरेज़ पैन में नृप जाल हैं हाल वरि स्यास मघायै मन में ॥ ईन का कचिता-काल १७६० ॐ असे पास या !