पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६४

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र म ... नान् । [१० 1०६७ (५४६) आलम | . ये मद्दाय संपत् १७६० के लगभग थे। शिवसिंजा ने ते का बनाया हुआ मैगन के द्वितीय पुत्र मुयज्ञम की प्रशंसा की एक उद लिया है । इस शिवित ता कि ये महाशय पर व के समय में थे । मुयज्ञम जाऊ फी टाई में संपन् १७६३ में मारे गये थे। आलम प्राक्ष थे, परन्नु नै कवि मामई र ग- ज़िन के प्रेम में फंसकर मुसमान हो गये और उसके साये बिबाह कर के मुन्नपूर्वक रहते रहे। इन के जहान नामक एक पुत्र * था | इन के चरित्रों का कुछ वन दर के हाल में आयेगा । | इस कद का हमने केवई ग्रन्थ नहीं दैन्ना, परन्तु शयः ३० फुट छन्द इमार देखने में आये हैं। मुशा देवीप्रसादजी ने दिया है कि उनके पास आलम पार क्षेत्र के परीष ७० छन्द हैं। इन के छन्द देने से में जान पड़ता है कि इन्द्वी ने नपशिस का भी के अन्य लिसा होगा 1 आलम एवः स्यामाविक कGि था और इसकी कविता बड़ी मनोहर है। सेज़ में मामल, आलम की कविता तथा माधयानल काम कैदला नामक इनके ग्रन्थ भी मिले हैं।कविता में यह कवि पड़ा दुशल हैं और इस काल का कारग भी इस का अविचल इक है । जान पड़ता है कि शेख इन्हीं के सामने मर गई धी,श्योंकि उसके झिरह में इन्द्रा ने एक बड़ा टकसाली झ्द फदा है। इस छन्द के रचयिता देने से भापासाहित्य के विसी भी फन्नि का अभिमान हो सकता था। इन ही मापा अत्युचम घर भाव ओर हैं। हम इन फी गाना पद्माकर कवि की थे में करते हैं।