पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६८

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१८५ मिहिन्धुप्निाः । [सं० १३॥ ५' रति रन यि ३ र ६ एति नमुन्न । तिन्हें इकल यकस ६ ३ बिग्नि के। वरन के फंकन उपज़न के चद्रहार मई माह विनी ६ अन सिके । सेस्र फ६ आनन फा आइरस दे पान | नन में चार नै मन पर! परे वैरी यार ये र ६ पट्टि पार्छ । ताते चार यार चैधत हा यार यार फस है ॥ | (५६६) गुरु गोविन्दासिंह । ये महाशय रिश्ते के अन्तिम दस गुरु थे । इनका जन्म संवत् १७२३ में हुआ था और स्वर्गवास १७६५ में । ये महाराज गुम होने के अतिरिक्त घण्ट्र युद्धकच भी धैइन दिनों में जातीयता पो चीज़ पापा । ये महादाय सुत्पनी एप्ति भी 3 धे मार चिता की दृष्टि से भी साधारण ४ी में स्थान पा सदै ६। जे लाग इनसे पञ्जाव के पहुँचा उस पर ध्यान देने में । महाशय विसी भी भे में रखे जा सकते हैं। पून; करवा कपल सँचत् १७६१ समझना चाहिए । इदरी सुनीतिप्रश, सर्व- दप्रकाश, प्रेमकुमार्ग, बुद्धिसागर, चैर सयड्रॉचरित्र नामक प्रन्थ लि र सिक्न भन्थे वो भी कुछ भाग बनाया। दी । आदि अपार अलैस अनन्त • अपार अभेप अलैच्य अनासः ।।