पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१६९

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पउन सुजान ! गुर्वात प्रश्रय । । ॐ शिव शक्ति दये स्तुति पारि रजेसमें सरा जिहँ६ पुरवसा । से निसा ससि सुर के दोपक इ४ि रो पनि च प्रकासा ।। र स्वाद हाइ सुरासुरः। मापहि दैवत आप तमासा ॥ {५ ४६) चन्द ३ पठान सुतान् । ये माशय राग भूपाल के नवाघ ६ । कविता के हैं परम नैनी सपना १७६१ के इधर उधर है। मैं हैं। इनके नाम पर चन्द्र कचिने बिहारी सतसई के दाते पर पुण्डलियाथ लगाई । चन्द ने ये कुलंय! आदर्गीय फड ३ । इनकी अन्य रचनायें भी म मनेाद्र ३ । इम इनके ताप कवि फी घे मी में मैं हैं।

  • मा नचाप दृग बरी झा की हैं।

सति में पेड़ कटीली हैं ' भी कैंस निरवार प्यारी ।। • चित्रपन वितं मना र नतिर फटारी । ई पटान सृलनाने विकलं चित देशि मसु ।। चाफा सहज सुभाब र का सुधि चल नासा ॥ १ बीज में एक चद द्वारा 'प्रभात भापका: । .eer हैं पर उगका मध नहीं दिया है। ज्ञान पड़ा। सन्द हैं महाभारत भाप थनाई। हिंदुसरीज में ।