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सेनापति
४३७
पूर्णाकृत प्रकरण

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सेनापति] गुवकृत मझरए । ५३७ मैं छन्द देने से जान पड़ता है कि इन्होंने अपनी कविता की बहुत बड़ी प्रशंसा कर डाली है, परंतु एमारा भत है कि इनकी प्रायः कुल दीक्तियों से भी इनकी पूरी प्रशंसा महौं । सकी है। इनके कविजन फेवल इसी कारण वहुत कम जानते हैं कि उन्हों ने पैारी हो जाने के डर से अपनी कविता पा डाली थी और इनका कैई भी ग्रंथ अब तक मुद्रित नहीं हुआ। | सेनापति की मात्रा शुरू भन्न भाषा है, परंतु दो एक छन्दों में इन्होंने प्राकृत निश्चित भाप भी कही है। इनकी पाँचता में मिलि ब बहुत ही कम नै पाये हैं और उसमें अनुमास में चमक का चाव्य है 1 ऐसी उत्तम भाप सिवा बड़े बड़े कवियैां के और कोई टिने में समर्थ म छुआ । इनकी भाषा का उदाहरण- स्वकप एक छंद नोच ली जावा हैं। दामिनी दमक नुर चाप की चमक च्याम वटा फी घमक प्रति घार घन घेरते। काकिला कलापो काले कुजत है जित जित, सवाल है हवळ समोर झकरते ॥ सैनापति आचन यो है मनभावन । । हैं तरसायन थिए जुर जैइरहै। यी अग्नि सावन बिरद्दसरलापन | सु लागे। पररावन सलिल चहुँ र ते ॥ सेनापत्र की फै। छपी हैं बिशेप चैम धा। इनकी रचना में ज इरिए यह रूपक पाल्य है।