पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७०

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३८८ मिधमधुमिनार । [१६६३ लिखे हैं, पर उनका कोई समय नहीं दिला है और न उनके शी) दी से ज्ञान पता है कि ये ग स पुन्द से पृथक ६ । थुपारे। विचार में इस पफ ही माशप का नाम सरोद्ध में तीन जगहों पर ले ६ ।। (५५०) उदयनाथ उपनाम कवीन्द्र ।। ये महाशय धनपुरा मंचासी कान्यकुब्न तैयारी महाकवि कालिदास के पुत्र पैर दुलह के पिता ४१ दुलह और राजा गुर दत ६ जी के पर्वत में इनका कुछ हाल मिलेगा । तति में इनके विषय में यह लिया ६ वि ३ अर्मों के राजा दिम्मतसिद्ध मार पुत्र राजा गुरसिंह के यही है। राज्ञी हिम्मतसिंद नै हो ६ सचन्द्रोदय नामक अन्य धनाने पर केन्द्र की उपाधि ६। इस मॅन्य में मैं इन्ट्री ने अपने नाम उईनाथ पैर छन्द पाभ लिने हैं, जिससे निपता कि महामाय पद् अन्य माम करने के समय में इन कवीन्द्र की उप पा गये थे। रोज़ में लिछा है कि इस एक ग्रन्थ ॐ रतिबिंदचन्द्रिका, तिदिन चन्द्रोदय, रसन्द्रिकी पैर रसचन्द्रौद्य, नाम हैं। बाप्त के अगलीज़ो नेमिक इन के एक और पन्ध्र का नाम लिया है। यह के पीछे ये महाशय भगवन्त राय खाच पव" तुदी के च राजा प्रदसिह के घी भी गधे और पन्ने अ। समान पाया ! दिदै फ़ा में छिच्चा है कि ये नैपुर के मझिी गञ्जसिंहप यह भी गये इनका चशर जो गजसिंह की मशंसा का एक ६, इसरोज्ञ में लिखा है, परन्तु जैपुर में गजलि ४ नामक