पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७२

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| 4 शिवन्धुडिनेदि। [सं० १०१२ | तरल लिहारी तरयारि गझी ६ व मात्र ६ न तन इम इन्त्र हैन जरी ६ ॥ (५५३) श्रीधर उपनाम मुरलीधर । ये महाशय प्रयोग के रहने वाले थे। घायू राधाकृष्ण दाम नै इनका अंगनामा मागरी-प्रचार-प्रन्य-मान्या में प्रालि कराया। इसपी भूमिका में उन्होंने न के प्रन्धों पर जन्म-कल व पर्यन किया है। उससे नान पत्रमा ६ कि धीधर के अद्भुत से प्रन्श घायू साय के पास गई हैं। इस भूमिका ? विदित होगा। हैं कि धीघर नै राग-रागिनी ६३ प्रन्य, नापिका-भेद, इन मुनयों का पर्यन, औपचरित्र की फुट इयत्ता, विषय, इ- " नामा परि षडून सँ फुट कविता घनाई । धनू, राधाकृष्य दास ने इनका जन्म हो यत् १७३७ १ समग मन ६ । मुद्रित जंगनामा में ६६ पृष्ठ ६ शिन में जवार व फलपसि! पा शुद्ध पर्थिव ६। एसियर दादुर शाह क अड़े ये का पुत्र और घरदशा का अति उत्तराधिकारी था, पनु दार बाद जबरदस्ती र हासनारूढ़ हो गया था । • फसियर ने उसे पराजित कर के दिम का पक्ष्य प्राप्त किया। इल पन्ध में कई छ में कप चर्छिन ई और हाशिये की राप्ति का अनुसरण भरे हुई। इसमें अज़माफ मेरि घई येाली का मिश्रा, पायता साधारण, गर घरी ॐ साज-सामान एघ सुद्धा याये की चीन पहुतायत से है। हुम का मास