पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७४

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| मिरवन्धुदिना। [१० १०६ (५५३) लाल कवि मऊ वाले । इस गद्दषधि नै संवत् १६४ के लगगग दद्दा चपाइयों में एक अनमेल अन्य धनाया, जिसे कानगिरी- प्रधान नामक प्रचार सभी ने अपनी झन्थमाला में प्रकाशित किया है। इनका द्वितीय अन्य विष्णुहास' है, जिसमें बचै छन्दै द्वारा कविता की गई है। इसमें नायिकाभेद का पन है वैर इसकी फपिता साधारण ६ । इनका पूरा नाम गैरेलाल पुरे दिन था । यद् पता में नपुर में लगे । इनका नाम शिषसि इसराज़ में न दिया गया ६ परन्तु उसमें लिखा है कि बूंदी के महाराजा छत्रसाल के थे। एक लाल कचि भै | छत्रप्रकाश के रचयिता लाल मईया एवं पर है महारजी छत्रसाल के यहाँ थे । महेवा छयपुर के अंतर्गत मऊ से मिला हुआ अद्य एक छोटा सा ग्राम है। इन्होंने अपने फुल, नियसि-स्वान आदि के विपय में घुछ भी न तद्दा है। लालजी में लिखा है कि छत्रपफारी स्वय' छत्रसाल फी इा से यभाया गया । इस ग्रन्थ में सं० १७६४ बिमय तक घन किया गया है, पर उसके पीछे - अपूर्ण ज्ञान पड़ता है। साल की उनी का सम्भव है कि हाल करि छत्रसाल के पूर्व ही वास हो गये हो, अथवा नागरी प्रचारिणी सभा के पूर्ण प्रति प्राप्त हुई है। त्रसाठ का स्वर्गवाल संवत् १७९० पः लगभग हुआ था। उनके | ग-सबन्धी २७-२८ साल की दाल इसमें भी मिलता है। ७ ने लिया है कि छत्रसाछ का जन्म-संयन् १७०६ में हुआ। ६ यथा--