पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७७

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| शाह ] पूर्वांत प्रकरवा । १६५ लग्यो हान तुरकन कैं। जीरा । केा रा हिन्दुनं के तेरा । घग्गतिराय । पर छौनी । मेप वैलन्नपद फै। दीनी ॥ शुजन , पातलाई झकझारी । गई भूमि जुरि जुद वारी । पंचम उदयाजीत के कुछ को यह सुमाद | इले है। दिल्लीस दल को दुदाने ननराव ॥ योग्पतिराय के मरने के समय सम्त राज्य मुराले के कड़े में आ गया था । अतः साल के, जे चम्पतिराय के तीसरे पुत्र ये, फिर से वादा का सामना करना पड़ा। उन्होंने फेवले पाँच आषार र २५ पियादा की लैकर मैरिडूजेच से चादशाह के साथ लड़ाई का साहस फिया । इन्होंने अपनी परिक्रसी के इस प्रार अगर्ने पर्चे भाई से कद्दा हैं, कि जिससे इनकी हिम्मत का पूरा परिचय मिलता है :- ॐ भुमियाँ रूम में मिलि दें। तै सङ्ग फोड़ के हैं ! जें न लागि सङ्ग मारे । द न लाने तिनके मारे । झे उमराच वैधि भरि ६ई । तै मनु बेस की पै ॥ जिनमें में सुद्ध की पाया । विनपे डर्मगि अस्त्र अजमाव । तग इसे दैस में देस आइई हाथ। शत्रु भगि६ मान भय साग लागि साच्च ।” छमसाल नै पद्दलै दो चार छाटी पार्टी छायाँ छट्टकर और अपना मल थट्टा के एक माह करके वरगो, पालद्द. कमी, त- घ, शै मनपर, सदरूदीन,अलसमद, औरअफगानस्रा घेर शाद कुकी का पराप्त किया। ये सब दिल्ली के अफसर थे और इन