पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१७९

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शाल]। पूनंत प्रकरण । ३१५ छना क रन से जाने । स्वाद इयंत सद्दीपक मान है। जा प्रभु तिकेक फी स्पनी । घट घट उपक, संतरामी ॥ ६। सैफ नद्रा लागे । साहेब तदा संग ही जारी १६ गयी लेन ६ गरवन ६ । रव मदारी विरद मचाई ।। केतिक रजा की रिस खाठी। प्रभु के हाथ सपन की चाटीं । इन पूर्वी न्यौ से छत्रसाल फी भा भी पूर्ण रूप से प्रकट होती है। कई गाने पर छत्रसाल के बड़े ही पिलाएगा ध्याश्यान इस ग्रन्थ में चयित हैं । शिवाजी भोर छत्रसाछ का मिलन इस अन्थ का बहुत ही अचन भाग हैं। छसाल # शिवा पर श्रद्धा पैख कर यह जान पना है कि अनुपम वीर होने के अतिरिक घे शुरवीं के बहुत धई भक्त भी थे। शल में केवल दे पायें में वेता की है, और १५० पृष्ठों के इस मुल्य में कोई भी तीसरा छन्द नहीं दिखा। परन्तु झिर भी ३५मा महर कविता रन्नने में सपर्ध दृप है कि कहना पड़ता है। कि तुलदासजी के अतिरिक्त फिस्रो र फा इन्हीं के समान हा चैपाई बनानो प्रायः असम्भव नै । इनकी भाषा स्वामीजी फी भाषा से पूध हैं और इतने अज्ञ भाषा, बुंदेलाग्रही भएर अवधी थाली का मिश्रण किया है। इनके यमक, अनुप्रास 'मादि का बिलकुल शैक न था, फिर भी इनफ भाषा अली मधुर ६। इस्रोने दिमार दिया है कि कवि यमकादि बाड़म्य। पा छाड़ कर एक छे से झ में भी उत्छुए कविता भर सकता है। इन फावत गैस गधुर है कि इनके कितने ही पद किंवदन्तियों के रूप में परिणत ६ गये हैं, यथा !--