पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८१

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rea ] पट्टित्व प्राय ! ११ साहस तज घर मालस मड़े। माग भरोसे उद्यम छ । ताहि नै जग संपत्ति ऐसे । रारुनी सी सृद्ध पति जैसे ॥ विपत मार्दै हिम्मति ठिक ठाने । बद्री भए छिमा उर् नै । वचन सुदेस सभनि मैं भानै । सुजसु जारिने में सचि रायें। जुद्धनि झुरै अकेले सैसे । सइ सुयि वडेन के ऐसे ॥ जाकी धरम रीति जग गाथे । जे प्रसिद्ध अलपन्त बहार्य । ज़ाहि जाट भैयन फी भने । करत अनारबीन घन आये ॥ है अबतार वट्टे फुल आये । द्धन जुरे जगत जस गायै । सत्य बचन जाके ठिक ठाए । प्रीति जाग प 'सात गुना ॥ | इस कवि की उदंडता सभी स्थान पर सूर्य प्रकाश मान हैं। भाषा-साईित्य में किसी भी सत्कचि की रचना में इतनी मुद्दष्टता ना पाई जाती । दी एक उदाहरणा से इसका चौथ मद्द कराया जा सकती, परन्तु मामाभाव से हम यहां देही एक उदाहरण दे सकते हैं। उमडि दारा में है। सही उदण्ड जुद्ध रस भैई। तय दारा विल इसति यादी । चूमन लगे सदन की दाढ़ी ॥ का भुजइड समर मई कै। उमद्य प्रलय सिन्धु के रोके । छत्रसाल दादा त मेरा अरुण र अमन उवि छाया । मया रीळ तज्ञाय देगारी | सार धार के पहिरन द्वारा ३रि देस मुगलने में मारा। दुटि दिलों के दल संघारी ॥ एह एक सिवराज नाही 1 करे अपने चित की सारी । आठ पातसाही झकझोर। सूबन पकार इष्ट है ।