पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८२

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भ्राद। [१० १७६४ फाटि ट्रक क्रियान चट यांट जंगुकनि छ। : छादि जुद्ध यहि रीति से घाटि धन धरिले । | लाल ने युद्ध प्रायः सगी थाने पर उत्तम पर्यन किया है, पातु में सघ पनि घट्टै ६, अतः यहाँ उधृत नहीं किये झा सकते, इसलिए एक छोटा सा बन यी लियते । चहूँ भार से सूबने घेरा 1 दिसने अज्ञात चक्र से फेरे । परे सर साहि के घाँके । धूम धूम में दिनकर द* । कबहूँ प्रगटि जुद्ध में हुई। मुर्गठन मारि पुनि तल के घानने चरित गर्यदन फै। तुझन राम%ि तेग तर ते ॥ फघ जुर फैज से माझे। देर लगाई ज्ञानु ६ पार्छ । वर्क और ठार रन मंडे। दादा करे डांड़ लै छ । कब उमड़ अचनित ग्रावे । घन सम शुमड़ लाई बरसाये ॥ कबहूँ कि इरान फूटे। कबहूँ चापि इँदोलने लूटे॥ कबहु देस दरकै दावै । रसद की कद्रन ने पावै । चाकी आहे कदाँ हैं जद्दी । जित देयी तित चंपति ६६ ॥ शैकि बैंक चौकी इडै कि दीकेि ज्ञमाय । फाके लसुगर में परे याकै सवै उपाय । छाड़ कवि ने उपनाये बहुत कम स्थान पर दी हैं और जाँ फही घे हैं भी, वह अन्य कर्मियों की भांति केारी उपमा न कई फर मुख्याधं पियर्स क उषमायें रूपक, उरा और कहीं कहीं उपमा प्रादि न कद्द कर अन्य रीति से उसी प्रकार , आदि कही है। मुख्याध की बद्धमान किया है।