पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८३

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| लाज़ ] सूर्याभूत प्रश्रय ६०१ । कई अझ मु' उछालत कैसे। घटने सेल सेहत नट जैसे ॥ द्र सरदार गाल ते गाऊँ । कानन भने गज़ीइन माने ॥ वैश्विक देवि जागिनों गाई । स्नप्प टने मौनत घाई ॥ इस कवि ने यह दिखा दिया है कि अलंकारों की सहायता न लेकर भी फदि उत्तम फायना कर सकती है। दाङ नै स्तुति के साथ मुख्य निफ्य के गिला देने में बड़ो पटुता दिपाई है। इसके उदातुरण अन्य के प्रतीय, तृतीय पार पंचम पृष्ठ पर मिलेंगे। इनकी कविता में इस बहुतायत से प्रापे हैं। | लाल । मप्रकाश, पिप्णुविलास पैर' रादि नामक तीन अन्ध रचे । अन्तिम ग्रन्थ में विविध छन्दों द्वारा प्रजघारो। में कृष्ण का वन है। यद्द पूरी अन्ध हमारे देने में नहीं आया ] कुल बानैl पर विचार करके हम छोड़ी है। सैनापति की अप का कवि मानते हैं। इन्हो ने तुलसीदास जी की भाँति कथा- प्रणाली पर कविता की है और क्या प्रासगिक कवियां में इन प्रथम श्रेसे में रखना चाहिए। लाल ने अपनी रचना बन ही स'ग सुन्दर बनाई और जिस चिपय पर कविता की उसी की उत्तमेात्तम रीति से फदी | इंदेलखंड में प्रसिद्ध है कि लाल की महाराजा छत्रसाल थी साथ युद्धों में स्वय सडते मी थे। कधा- ग्रामक युद्ध कविता में इनके जेवाड़ का काई भी की देने में नहीं आता। कहते हैं कि साल का शरीर पात भी किसी पुस । में हुआ ।