पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८४

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निमन्बुदिद। [सं० १७६१ (५५४) अब्दुल रहमान (रहमान) ! ६ मा दही वे ने पाढे और माअञ्जम शाह (कनु! दीन शाह आलम धदादुर ६) के मनरेइमदार थे। इन्होंने यमक तक नाम प्रधनाया, जिसमें कुल १०३ देई हैं, और दो मय, यमपुरी एकाक्षरी इत्यादि ई ई गये ६, परंतु किमी प्रम से नहीं । भाग इसकी कठिन है, जिसका कारण शायद घि पाच्य है। इस प्रये से विदेत होता है कि ये महाशप माया पर्छ ति से जानने थे और सस्त भाषा भी इनकी कुछ अवश्य देरी है। इन्हों ने ग्ध निर्माण या सव दिया है, परन्तु पद पेसा अशुद्ध दिया है कि उसने सब नहीं जान पड़ता। वहादुर शाह को राज्य-धील संवत् १७६३ से १७६८ तक है। अतः इसी समय में यह ग्रंथ लिन्ना गया है। इन्होंने अपना परिचय दिया है-- मैयज्ञम छत्रपती सुपनि दिपति क्षुधवन । चकन अलिममीर सुत नुदीन पद लौन ॥ हा मनसबदर जगत कवि अवदुल रहमान | इम इन। तैप की श्रेणी में समझते हैं। उदाहरणार्थ | इनके कुछ छ; नीचे दिये जत्रै है:- एलझन में राः पियहि पदक न छोडी संग । पुतरी सा ते दीदि जिन इपितु अपने रंग ।। फरकी की चूरियां बरकी वरकी ति। दुरकी दरकी फचुकी देरी इरकी मोत है