पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८५

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मसि मिश] गूाँलंकृत प्रकरण । | (५५५) दूरति मिश्र ।। थे महाशिये कान्यकुज ग्राहा मिथ आगरा निवासी थे, जैसा कि वे स्वयम् खिम्रते —सूरति मिश्र फर्नाजिया नगर गिरे मारा। इन्हों ने (१) अलंकार-माला नामक अलंकार-ग्ध संपत् १७६६ में जिला पार संवत् १७९४ ३ (२) अमर-चंद्रुिका नामक बिहारी सतसई की टीका अनाई । आपने (३) कवि प्रिया की टीका भी रची जिसमें संवत् महीं दिया है, परंतु हमारे पास जे पुस्तक है, घडू संपत् ६८५६ की लिखा हुई हैं। इनका (3) नख शिख इम ने ठाकुर शिवस'E जी फौधा निवासी के पुराल में देखा। इसमें भी संवत् नहीं दिया हैं, परंतु चइ प्रति संवत् । १८५३ घी मिला है। इसके अतिरिक्त शिवसहसपञ्च में इनके बनाये (७) रसिकप्रिया का तिल्क बार (६) रस सुररा नामक दो 'ध और प्ले हैं। ये हम ने नहीं देखे । अतः अजुनीन से कही जा सत्रता है कि सूति जी सपत् १७४० के लगभग उत्पन्न हुए है। बाज में इनकी (७) प्राक-चन्द्रिका का भी पता चला है। ये महाशय अच्छे कवि थे और भाषा इनकी मधुर थी। सन: स, व कवि प्रिया के तिलों से इनके पांडित्य की पुर्यं परिः जग छिना है। ऐसे उत्तम तिलक बहुत ही ज्वाई विद्वान पर सके हैं। सतसई पर कम से कम पदइ बस तिलक हुए है, परंतु सुरति जी के तिलक फी समानता एक भी नहीं कर सपता I इन्हीं में अपने तिलप में शये फरके इनषा सनाधान