पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८८

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मिभयन्यना। [सं० १४६३ सेज में इनके घनाये हुए काव्य-सिद्धान्त, रसरत्नाकर और किर्भिया की टीका रस-किचन्द्रिको नामक प्रन्प लिये हैं। उदाह्रया । कमल नपन यामल से हैं नैन जिनके कमरूद यरन कमलद कहिये मैच फेर दरगए है स्याम स्वरूप है कमल नाभि श्रीवृप्या हो नाम ही है कमल जिनकी नाभित उपन्यो ६ कमलाप कमा लष्मी ताके पति हैं तिनके चर फमल समेत गुन पी जाप क्यों मेरे मन , में रही। इन पद्य कर्यिवा, टीका और गद्य फाय फन विचार करने से पूरति जी एक उत्कृष्ट फर ठहरते हैं। इम इनके पडूमावर की श्रेणी में रखते हैं। इनकी टोकञों कापडिय विना पूर्ण ग्रंथायले- कन किये विदित नहीं हो सकता, अतः इम पाटके से उनके देने फा अनुरोध करते हैं। (५५६) महाराजा अजीतसिंह। ये महाराजा ज्ञाघपूर के प्रसिद्ध महाराजा भाषा-भूपण के रचदिता जसवन्त सिंह के पुत्र थे और सवत् १७३७ में इनका जन्म काबुल में झपने पिता के मरने के कुछ महीने पीछे दुष्प था । उस समय इनके शव भाई मर चुके थे से जन्म लेते ही ये महाराज हुए। बारगजेब ने इन्हें उस समय गिरफ्तार करने का पूरा प्रयत्न किया। पर राहूर लेगे ने तीस वर्षों तक मुद्दे को अपने बालक माज़ का पचाया । इन्फी बाल्यावया इस प्रकार दृढ़ने भगिने आदि में