पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१८९

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म० शर्सिट] पूर्वलंकृत प्रकरण । पदीय हुई थी कि चार होना है कि इन्होंने किस प्रकार विद्या पढ़ी और जिस प्रकार कविता सौजी १ अपने संबत् १७८१ सफाज़ किया । मुगल साप्ताज्य की और से इन्होंने सरवलन्द्रों के परीसा कर गुजरात प्रान्त के जीता रबादशाह ने इन्हें बच्ची का शासक भी नियत किया। अन्त में इमको चढ़ भतुत बहते देस शाह ने संपत्, १७८९ में इनके पुप ए के मिला कर धेचैन जी सै इनका वध करवा शाला । इन्होंने निल लिखित ग्रन्थ चनाये।—दुर्गी पाठ भरा, गुण सागर, राजा झप का प्याल, निशा दीदा, महाराज श्री प्रजास- सि' की कह्या देहा, महराज़ थी अजीत सिंह जी कृत दादा औठाकुररा मोर भयानीसहर नाम । आपकी भाप प्रज्ञ भाषा है निस नै राजपूतानों को भी कुछ अंश हैं। इनकी गणना साधारण ॐ थैया में हो सकती हैं। उदाहरण ।। प्रोताम्बर छगी कळे जर वैज्ञात माल ' वेंगुरी पर गिरिवर घरी सग लथे यज्ञ घाल ॥ जब ला सुर सुमेरे चन्द्रमा राडू वगन । जन कर पणन प्रताप जगत मध तेज अनि तन ।। थे लांग सान समुद्र सयुगत धरा चिरा। जब लगि सुर ततस केटि आनन्द मान्ने । तब लगि यस भाषा र सइस नाम जप में है। अगत कई इनके पन्द्रत हुनत सकल सुम्न के लदी॥ । (५५७) मियादासाने संचव १७६९ में भक्तमाल की टीका पनार्दै । इनका हाल गाभदास जी के दर्शन में देखिए ।