पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२०६

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| १३४ मिश्नपथुपिन्द्। संयत् १८८२ था रिसा हुआ दयार छतरपुर में पुस्तकालय में देने का मिला, जिसमें १८११ विपिप छन्द तथा १०४४ ष द्वारा निर लिपित विषय चरिन ६ - प्रियाप्रमाद, अजयोहार, चिगवेरी, कृपादनबंध, मिरिगाथा, मानाप्नकाश, कुलविनोद | अजप्रसाद, घाचमवार, दृप्याकीमुदी, नाममाधुरी, शृंदायन- मुद्रा, प्रेमपत्रिका, मजवर्णन, रेसइसत, अनुभचंद्रिका, रस- घाई, परमरसबंशावली और पद । इनमें पद की रचना साधा- रेण ई मेयर उनमें भकि दधा ज्ञलौदामों पा घर्शन किया किया है। दूसरे गर्यन विधि इन्द्रों में किये गये हैं जिनमें कवित्त तथा सवैया की अधिकता है। इनमें कथित विपर्यों का प्रान उनके नाम ही से प्रकट होता है। इनमें मजब्यौहार, पियागी , भाचप्रकाश, घामचमत्कार, पृष्पकमुदो, वृदावनमुद्रा, मुरलिफामाद, प्रेमप- त्रिका, आदि पर कविता है। यह साहित्य परस र शसनीय है। इनकी भापा एत्र कविता चहुनही शुद्ध तथा रसीली होती थी। इस भारी प्रथ में हर स्थान पर भक्ति का चमत्कार देर पडा है। घनानन्द की लेाग येस समझते हैं। यह विचार इनफी फुट रचना देखने से उठता है, परन्तु जान पड़ता है कि उमर ढलने पर इनके चित्र में महान इंफिर निर्वेद उत्पन्न हुआ, जिससे यह भी जकिर निवार्क सम्प्रदाय में दीक्षित होकर प्रजवास करने लगे । वृंदावन घाम यद भार इनकी इस रचना से इर्द होता है। गुरफ्नबनायो राधादन हु. गायी सदर सुखद सुदायी वृंदावन गार्दै गदि।