पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१

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सेनापति
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पूर्णाकृत प्रकरण

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सैनापति ] । यलिंकृत कर । 991 इमकी कविता में प्रत्येक स्थान पर इनकी वलीनता देख | पड़ता है। इस फम की समस्त कविता स ६ । इसने प्रायः न कहीं किसी दूसरे का भाव लिया है और ने अपने चित्त ः मरि- फूल पौरई यात लिखी है। इनकी तल्लीनता निन्न चरि पर्दै से प्रकट होगी :- दीन बंधु दोन के न पचन कर पाने मैन हैं। | रहे हैं। फछु भति मन माने हैं। 1 पातें राज्ञा'राम जगदीस जिय जानी जाति भेरै कुरः फरम झपाद फील रा हैं । एयर फति काल मैतिं पालै ना निवरि सके हैं तो प्रति माह अति फायर गैयार की। सेनापति निर्धार पाँयास बरदार ६ नी | राजा रामचन्छ छू के इचार हेर । यद् कवि अपनी धुन का इतना पा था कि इसके सवैया छंद गसंद न आने के कारण इस ने एक भी सवैया अपने काय में नर रक्षा | चैारी देने के दर मै इनके अपने ममेक छंद में नाम रखना बहुत जरूरी समझ पड़ता था पैर सवदी में इनका नाम नहीं आ सकता था । शयद इसी कारण सथैया इन्दी में न शिक्षा है। 1। | इनकी प्रगाढ़ भ िभी इनके पन का एक प्रधान गुरा है। सेनापति की कोबेवा में उनके विचार भरे पड़े हैं। अपने प्रिय इतनी बातें भाप के घदुत थियेई ने न कहीं देंगे। इनकी भचि पंचम