पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१५

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सीत् ] पूर्वार्ज करवा । ', ६३३ - शिव पिप्पु ईश बहु रूप तुई नभ तारा चार सुधाकर हैं। चंपा धारानल शक्ति यः स्वाहा मळ पवन दिवाकर है। इम अंशीअंश समझते हैं सब पाक ज्ञान से पाक रहें। तुन लालयिता ललित ललन इम तैा तैरेई चाकर ३ ॥ कारन फाज़ है न्याय दे जातिस मत दय गुम् सती कहा। ज्ञtti ने इश्क इसन युसुफ अरहंत जैन इबि वप्त का ॥ इत ज रूप से प्रेम इश्कृ जान छथि शेना लिसा कहा। लाला हम तुम के चद्द जाना है। ब्रह्म तत्वत्वमसी कहा उपरोतः इदा को देख कर होई । रिचारपग्न् पुरुष पह मा ६ सकता कि सीतल का चालचलेन दम या । उपरोक्त आक्षेप किसी ने सोतल पे दी चार फुट छन्दै फै। वैख कर भ्रम- इश कर दिया है, क्योंकि इनके कुछ छन्दै। फी भघि दूसरी तरफ भी लगाया जा सकता है । इनष ग्रन्थ की औज्ञ फल के महन्त नै पड़े दर से छपवाया है। इसमें गुलज़रिश्मन, अनिन्द्रचर्मन और बिहारचमन नामक तीन भाग हैं, जिनमें १२१. १९२ देर २४ छन्द हैं। तीन चमूने में प्रधानतया नव-शिस्त्र का विषय है, यद्यपि र मार दिपयां के भा छन् । | सीतल के चमन पास्तव में भाप्पा-साचित्य के अपूर्व रत हैं। इसके सब द प्रेम से परिपूर्ण हैं। इसमें मुख्यतया नख-शिद्ध कदा _गया है और पैशा एवं पगड़ियों को विस्तारपूर्वक वर्णन है । -इनकी पूरी रचना में एक छन्द मी शिथिल था नौरस नहीं है | चार घट्स बड़ी ही जारपत्रं चित्ताकर्षण है। इनके स। छन्दः ।