पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१७

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/ सीतह ] पूर्वावंत मरण । ६३१ मुग्न सद् घन्द पर ठार गया जानो के ६ पसीने का। ५ फुदन कमल फळी ऊपर झमकाट रफ्या मीने का । वे से देश कहां रह है। पिदर चूअ सीने का। या लालधदरश पर या चाफा इदमास नगीने का । इम रवून वराह से ज्ञान गए जैसा भानैद' का कंद किया । | सन्न रूप सील गुन १ज्ञ पुन तेरे ही हम में बंद किया ।।। तुझ मन मी की वा ले फिर विधि में एहू फरफद किया। चंपकल सैनजुही नरगिल चमकर चपला चंद किया । मुख सरद चन्द्र पर पुनम सो जगमगै नपत गन जाती से। के इल सुलाने पर शवनम के हैं फनके काप उठी से ॥ छारे पानिय मद स्ट' ई सुधा हिरम के गेसी से। आया ६ दुन अरती की धर कनक थार में माता से । वरनन करने के क्या करने पर जैतो बानी है। ग्रह ौन इम के पड़े हुए जानी द यूसुफ सानी है ।। भनि भवन जीव सफरी में गुर चन्या बुध चैाविप ज्ञानी हैं। इस लालचिदारी की सील त्या अर्ध चन्द पेशाम ६ ॥ चन्दन की फिी सारु पी साती या सच गुन जटा हुन् । चाके की चमक मधर विद्द सन मनै यकदम फटा टु'६॥ ऐसे में ग्रहने समैं सोनल यक जान पड़ा अटपटा दु । भूतल ते नभ नभतै प्रवनी अग बङ्गले नट का बट्टा छु । सीतल का शुस समय हमें छाछ ही में सात हुआ है।