पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२१९

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नाग्रीदास ] । म्याग्ने प्रण । ३३५ हीतल के लौन करत घनसार है। महोतल की पश्यन करत गंग धार ६ ॥ (६ ४८) बाघ कवि-कन्नौज निवासी । ये महाशय १७५३ में उत्पन्न हुए मे १७८० में इन्हा नै कचिना की। माया नीति पिने घड़ी जोरदार प्रामीण भाषा में कधी है। इनकी गमन साघार ४ा में है। मुर चाग है मामु कटाई सकरी भुइम स्था। घधि कई ई तीनउ भकुहा उदर गये पर नैं । चन्ना पद हुई ज्यानैं ग वनवा धरे लायें । साथ है । तीनिउ मेकु पीसत पान चधार्दै । उधाय फाहिं पेडहाय प्रलाप परु डा ठारे । सारे के सँग बहिनी पट्य तीउ को मुंह का .. कुचकट सही तफट जाय । जे पहिौठी बिटिया होय ॥ पातार फुपी धोरहा भाप । घाव फई दुत्व को समाय ।। (६४६) महात्म। श्रीनागरीदास जी महाराजा । इस नाम के चार पॉच कधि अभ-मण्ड में हुए हैं। इनमें से | एक भी बल्लभाचार्य सम्प्रदाय के, पक स्वामी हरिदास जी की सम्प्रदाय के, एक गई हल हरिबंशजों की आमदाय के और एक मारें चरित्र नायक महाराजा नागरीदसिमी भय सम्प्र- | दाय के थे। इन कविवर का यौन सरोकार ने किया है, परन्तु