पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२०

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[१६ १७८० मिषन्शुदिनी (६४७) ऋषिनाथ ।। में महाशय असनी के सैन्दोजन प्रसिद्ध कवि ठाकुर के पिता और सैयक प्रपितामह धे। ये भी प्रसिद्ध कवि थे पर इनके फुट उन्म घडुन विशद मिलते हैं। कादिराज्ञ ६ दीवान सदानन् तथा रघुपर काग्रस्य के अश्रिय में संयत् १८३१ में इन में अर्लधार माया मजरी नामक एक उत्तमप्रन्धभी घनाया । इस के १८३ उदी में बाई चियप, पर या काए घनाक्षरी, छप्पय प्राव भी हैं। इनकी फयिता प्रजभापा में । इनकी भाषा स्य, भारः गम्भीर है और दौदे में इनके भाव में मनायागन देखें पड़ता है । इतर कविता- कलि १७८० से प्रारम्भ होना अनुमान-सिद्ध है, क्योंकि कुर का कविताकाल १८० के लगभग समझ पड़ता हैं( शकूर का इल देरिद ) 1 इम इन्हें तोप काय की ी में रखेंगे। उदाहरण । श्री नैपाल तमाल सैर, स्याम्मल तन दरखाये । ता तन सुगरन येलि सा रीघा अदी समाय ॥ छाप छत्र * करि फरत मदिपालन को पालन की पूरी फै। रजत अपार है। कुत उदार ६ गत सुक्य नन में। जगत जम्मत हूंस इस बीसदार हैं। ऋषिनाथ सदा नन्द मुजस लिन्द तम वृन्द के इग्यो भन्दू चन्दिफा सदार हैं।