पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२२

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मिध्वन्धुयिनैद । [१० १७६५ स० १६४८ दिया है। उनके अनुसार कर ग्रिपर्सन मात्र । भी सन् १५९१ डिग्र दिया, परन्तु दिशय सिवा तथा दाकुर सद्दिव का मत भ्रममूलक ६ । इन लोग। ३ यिना किसी आधार के यह सवत् मान लिया ६, ॐ नागरीदास जी ६ स्वरिचत प्रन्यों ने के समय से ग्रनु दह्रा । नागदास जी री सर्व प्रेम रचना भनेरथम जरी ६ जा सवत् १७८० में बनी। सम्पत पात्रह से असा, चादसि मगर दार। प्रगट भनेरथ मजरी वाद झन् झववार । नगिरीदास फै ज्ञापन-चरित्र में इनका जन्म काल स. १६ पीप दृ० १५ दियः हुआ है, जैः पर्तमान महायज्ञ कृप्यार की प्रशिर से लिपर गया और यत् १९५५ में मुद्रित हुमा । इसके विपय में किसी तरह का सन्दैछ नहीं किया जा सकता। हमारे चरित्र नाथष का नाम महाराज सायरस इजी या और ये पविती में अपना नाम नगर, नागद, नागरिया र नाम- रीदास राते थे। ग्राणके पिता महाराज्ञा रामसिद, पितामह महाराज़ी मानस ६ पार प्रपितामह महाराजा रूप"सिद जी थे। इनकी राजधानी कृष्णगढ़ राजपूताना के अन्तर्गत है। नागरीदासज्ञी का जन्म राठौर कुल के क्षत्रियों में हुआ था। पहले प्यानद राजधानी मद्द थी, परन् इसकी जगह राजधानी रुपनगर में थी, जे प्रतक इन चशप के राज्य में हैं। महरिराशा भागरीदास कर जन्म शान पर रजिधानी यही कूपनगर था, परन्तु प्राय राज- धानी एपाराष्ट्र में ६, इसी कारया में प्यागढ़ के महाराजा फ?" गये हैं, जिसमें जान जानने में किसी का भ्रम म पड़े।