पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२५

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अजिंकृत भए । ६४३ 'गढ़ की प्रशानुसार मुदित करके प्रकशित कियf ६। रापा । कागज़ अच्छा है र विषयसुचो, पदपूवी और जीवनचरित्र इयादि लगा कर इचम रीति से ग्रंथ छापा गया है। अदि में छपन भाग चन्दिका नामक ५२ पृष्ठ का पुष ग्रंथ याच चिन भी है। अन्य में महाराज नारीदासजी की उपप बना इन उपनाम निक विद्दारी के भी ६१ पद संप्रौन ६ । नागरीदासजी के विनय- विलास तथा गुप्तरसमकाज नहीं मिलते। | चेयसागर" ५३ में समाप्त हुमा है । इसमें नगर- दाउ न त वैराग्य र भक्ति-संवन्धी छाई छाड़े मंधां का संग्रह है। सिंगासागर ५२१ पूछों का प्रथेलिमें श्री राधाजी ये शृङ्गार-संवन्धी बहुन से ग्रन्थ समिलित हैं। | "पदागर' में २२२ पृष्ठ हैं और इस में रिशेपतया पर्दे के प्रय संग्रहीत हैं परन्तु कहीं फ दाह या पैर छन्द भ ६ । नागरी वास जी की भाषा चिोपतची ब्रज्ञभाग हैं और कहीं फदा इन्ट्री संम्त मिति तथा फ़ारसी मिश्रित भाप का भी प्रयोग किया है। ग्रडी येळी फी भी कविता इन्दनै कहाँ कहीं की है । इश्चमन में फ़ारसी मिश्चित ६ बुदुत ही उत्तम हैं । गद्य काय भी करें पही अपने किया हैं। "पप्रसंगमाला' में चाठिंबा बर्णन कई जगह ६। गुजरात, मीरपाड़ी तथा पंजाबी भाषा मिश्रित कविण भी उन्हाने यत्र तत्र की है। ब्रज की महिमा वर्णन करने में ये माराज़ बहुत विमल जाते थे और जहां जहां ग्नज यः शुन्य ६ घन इनकी