पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२७

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मागीदास] पूर्तते करण् । |गड़ की आशानुसार मुद्रित फरकै प्रकाशित किया हैं। छपा ६ धागा अप है येर विषयसूची, पदपूची भार वनचरित्र त्यादि लगा कर उत्तम रीति से ग्रंथ छापा गया है। अवि में पन भाग- चन्द्रिका नामक, ५२ पृष्ठ का एक थ जयकच रयत भी है ! अन्त में महाराज नागदासजी फी उपप सनी उनी उपनाम रसिक बिहारी के ग ६५ पद संग्रहीत हैं । भागदासी ६ विनय- विलास तथा गुप्तरसप्रकाश नहीं मिलते। चैरायसागर' १५६ पृष्ठों में समाप्त हुए हैं। इसमें नागरी- दास जी कृत चेग्य र भकिसन्यो अटे ट्रेाटे अँधां का संद है। | सिंगारसागर २१ पृष्ठों का ग्रन्थ है जिसमें श्री चैन, राधाज्ञी के टुङ्ग-सबन्धी बहुत से ग्रन्थ समिलित है। “पदसागर' में २२० पृष्ठ और इसमें चिोपड्या पन्दे के अन्य संग्रहीन हैं परन्तु दो कदी वेदा या और छद भी हैं । नागरी दास जी की भाषा विशेषतया ब्रजपा है और कहाँ कहाँ इन्दन संपात मिश्चित तथा फ़ारसी मिश्रित भाप का भी प्रयॆाग किया है। गडी घाटी फी भर कविता इन्होने कहाँ कई फी है । इधमन मैं फारसी मिश्रित दाहै बहुत ही उत्तम हैं । गद्य कार्य भी कहा फ अपने किया है। पदप्रगमादा है बार्तिक चर कई जगह हैं। गुजराती, मारवाड़ी तथागामी भाषा मिश्चित कविता भी इन्होंने यन क्षेत्र की है। इन की नदिमा घन करने में महाराज बहुत विमल बाते थे और ज ज म या वृन्दावन के पर्यन इनकी