पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२२९

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| नागरीदास] पूर्वोकृत प्रकर। ६३६ -' की भक्ति से पु तल्लीनता युक है। ये महाशय सुकवि र प्रजवासी कृष्ण के अखेरपरी थे । इन इनफी कविता झा अनुभव पालकै । इनफे उंद उदाहरण स्वरूप देकर नहीं कर सकते, न इस लेस में इतना धानही है । म पाठक से प्रार्थना करते हैं कि वे इनफी मन- मानी कविता । अषपमैच देखें और अपने हुवय तथा शिधा की पावन करें। अब हम इनके दो वर उदाहरण देकर इस लेखे के समाप्त करते हैं। इनकी गुरना सेनापति की भी में की जाती हैं। उदारय । उक्षल पछ की ग चैन उइल रस दैनी ।। इंदिरा भयो उड़राज़ पहन दुति मन र छैन । मह। कुपित है काम ऋ अस्त्रहिं छै यो मनु। माची दिसि ते अतुलित बन अगिनि उ जतु ॥ दहन मानपुर अवै मिलन की मन हुलसावत । छाबत छा ग्रम द चंद ज्यो त्यो नभ माबत ॥ जगमगा वन जाति सेन अमृत धारा से । नये इम किसलय दलनि चारू चमकत तारा से ।

  1. त रञ्जन की रैन चैन चिक मैन उमइनो।

तैर मर्दै सुगंध पौन दिन मन दुजे दगी ।। मधि नायक गिरिराज पाईक वृन्दाबन भूपन ! फदिक सिल ने टग जनमत दुति नः पन में सिडा तिला प्रति चंद घनकि क्रिनन इन छाई । शिव पिच घंव कदंव झव झुक्ति पायी आई ॥