पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२३०

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मिश्रन्धुचना ! | मं. १३८ र र घट्टै फर देर फूलन के देव । करत सुगंधित पयन साङ नन मानत होत ॥ विमल नीर निकाय कहुँ झरा नुर वारना । मदा सुगन्धित सहज घास कुम कुम मद रना । कई कई दौर घाट पर भडद तुर थे । ज्ञति नन कइल ग्रंभ झूटन विकास में ॥ शेर र ल और रहने मनमथ से भारी ! बिद्दत बिचैध मिट्टार तद गिरि र गिरिधारी ! भुव धनु कच धुरा छुटे दसन दामिनी वृद्ध । राधे अटा मान गरज पुन मन्द ।। उमरि मिली इत उत दुई दिसि ते' र घटा अरु श्याम ।। गरञ्जन मधुर कि किन नूपुर चीनकः धयन रघन भुक्ष वाम ॥ अम जल धरत 'फ़ी सुद्दी फब इनान्न मन मिनि अभिराम । उद्धि प्रत मन छक पंगत दिलुलिन मुकता देम ।। कुसुम से अपनी विचलित भइ अति ग्रानन्द एि नप फाम । नागरिया यहि विधि नित पावस वृन्दावन सुख घाम ।। इस दुरून वे भुपछि धरना पन पर है। फिर धश्म दिन विचारी शायर खान या ६ ॥ कञ्जन 5 ते दहे दिन संज्ञने नि पैन । संज्ञह गति संगम मा पिम मन रंजन नैन । फनी भृग मद आई चि शरै मदन भयंक। मनु पिप मान मंत्री राजत अचली अंक ।