पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२३२

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[ti० १७८ ३४८ मिश्रबन्धुविनोद। म अन्न सुर्खी प्रत्र के जाव । प्रान तन मन नैन सयस राधिका को पत्र । कही झाद मुक्ति में यदु पी मृई मुसकान । कहाँ ललित निकुन ली मुलका फल गान / कहाँ पूरन सद् रजनी जान्ह जगे मग ज्ञात । कई नृपुर' घीन धुन मिलि रास मंडल द्वैत ।। झह पति कदंब फ झुक रही जमुना पाँच । कह रग बिहार फागुन मचत केसरि कच ॥ न थचनन की रतन जगमन दा रंगे । घळ गद गद राम श्रद्मन म पुलकित अंग ॥ दसि नागर बद्दल माहे मुख मुकि ग्रादि अपार । आई प्रज बस अपन में प्रज्ञ यादमन फी गरि ।। " हमारे मुरळी पारी श्याम । दिन मुरली मन माल चंद्रिका नई पहचान नाम है। rप कप मापन घरी प्रज्ञ जनै पूरन कमि । याद्दी से। दित वित्त पो छ दिन दिन पल दिन शाम ॥ नंदगोप गैध गैफुल्ल परान पिसम्म । नागरिदास द्वारिका मथुरा इनसे कैसे काम ॥ इन महाराज ने अपनी कविता में कच्ची की अन्य कार्यप में छन्द भी रखे बेचे है परम्नु प पर ला दिया है कि अयं षधि के पद ।