पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६१० मिश्रबन्धुदिद। [१० १७८ ५५ अतिसार (१७) ६१ गुन्द शक्ति दिने (१८०८ ४६ वैशा ६२ रनुफम में वे ४ वैरागी ६३ शरद की माँझ ४८ रसिकग्नावली (१९८२) ६४ साझी फूल छीनन समेत भाद्र ५९फलिवेरगिवली (१७६५) । ५ वसतवन ५० प्ररिल्लपचीसी ६६ फाग छैन तालुकम ५१ छटपबिथे कप्त ५३पारायचिमिफाश(१५) ६७ रसानुक्रम के कवित्त ५३ दिगन्ननग्न ६८ निकुञवलास (१४) ५४ जिशिका ६५ निंदपरचई ५५ टप थविलु ७० मनजनप्रशंसा (१८६९) ५६ चचारियों ७१ छूटक दाहा ५७ दैग्रता २ उत्सबमाली ५४ मनैरथमंजरी (१७८०) ७३ पदमुक्तावली ५९ रामचरितमाझा ४ वैचिल्लास ६० पदमधिमाला ७५ गुप्तरसम्वाश | ३ देने अन्तिम अर्थ मय कृपगढ में न मिलते, अँपल पुत्री में लिने हैं। इनका एक प्रन्थ 'धन्य धन्य ज्ञ में हिमा है। नाम-(६५०) रसग । अन्य सानी। कविता-काल-१७८e |