पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२३५

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पूर्णाङ्कत करए । ब्रज भापा तभी बड़ी बैली में हैं। इनकी t में की जाती हैं । यह पुस्तक घमने दूरचार छत है। इस रग और मुसलमान थे। ये पद्द धामियां के मैले हुए और पीछे नि अछी सदाय में आकर भगवत बलिक के शिप है। ये । इभका म्यान झांसी था ! इसी नाम्य आदि ज्ञच से जान पड़े हैं। उदाए । तेरै मद्दचूद्ध चके ३ चसम की वैट मारी है। सही हैं भानने ही में जरी नहि एक टारी है। जिलाया झनीने सुझका जिने यद् गसि मारी है। तड़पता कधी मा जीती विद्वा दर्द भारी है । (६५१) भूधरदास जी जैन। इन्ही ने जैन-शचत नामको एक ग्रन्थ में अपने सिपय एक फर्वित्त लिया है, जिस से विदित होता है कि ये महाशय अगिरे के हुने वाले सवाल जैन थे। इन्होंने महाराजा जयसिंह हवाई के फवानी दुरीसिह के कहने से जैन-शतक झन् १७८१ संसद् में मनाया ! इस में इna नाहर व ई 1 ६५ , में पाव । पुरा नामक माथः १६० पृष्ठ का वधुत करके दादा चैागाइयों में नितीय जम जैन अन्य छिजा, जिसकी जैन धर्म में पुरा की मोति पूजा ही हैं। ये दोनों मन्य हमारे पास वर्तमान हैं। इनके सूत्रीय अन्य भूधर-विलास का एक अंश जैन-पद-संद ठीच भाग हमारे पास है, जिसमें ६८ पृष्ठ ६ । इन्होंने मन भाषा में विवा की