पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२३९

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चरणदास] पूर्दालंकृत प्रक्य । वह नन्, किसरि शिरीं सदा यहि हानिक में हिय माझ यसै ॥ | ई अति आरत में त्रिनती वचार करी करुना रस भीनी । कृणु कृपानिधि दीन के बन्धु सुनी असुनो तुम फाटैक कानी । झते रंचशी गुग स च चनि बिसारि मन अब धोनी। ज्ञान परी तुम हूँ इरि जू कलि काल के दानिन फी गति लीनों ॥ नाम- (६५३) चरवास धूस मक्का अलघर । शुन्थ–१ अर्येाग २ नर सुकेत ३ सद्दसागर ४ भक्तिसार ५ इपिप्रकाश टाका (१८३४) ६ अमरलोक खंड धाम ७ महिपदारथ देशद् ९ दानी १७ मनविरक्तकरन गुरका ११ शममाला । उत्पश-काल-६६७ । मरण-काल-१८३८ । विवरण–साधारण थे । ये अडवर में पैदा हुए और वैली में मरे । ये व्यास पुत्र शुकदेव जी के शिष्य माने गये ६ । सराज ने इनको समय १३ दिया है मगर केयल ज्ञान- स्वरोदय इमा रचित दिया है। यह ज्ञ का संवत् दिया गया है। | इददि | नमो नमै सुकदेव जी क प्रनास अन्न । तच प्रसाद स्वर भेद की मरन दास बनेन ॥ चरण दास मी सुकः कदत थिरकत पर पहिचान । विर कारज की चन्द्रमा घर के भानु सुजान । ज़ में कुक्षेत्र लीला नामक इनका एक झन्ध चार मिला है।