पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४

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मधल्पविद् । पान नरमागृत का गान गुन गनन । हरि पापा हुने विदा दिये ६ हुरचे ! प्रभु के उतरन की गुदरी र पीरन फी माल मुज़फट उर छापने की स्टरिना ॥ सेनापति घरि ६ काळ जनम मरि । पृन्दावन सीमा ते न याद्दर निरसिधै। राघो मन जन की सभा मेन जन माले गरे शुजन की फुजन फेा पसिनै । मानसी जयि मन फरनी अन्दाय मेरा शंकर से राम नाम पढ़िये के मन ६ ॥ इतने बड़े भय और पड़े विचारों के मनुष्य होने पर भी सेना- पति कैमल (वै के धर्णन में भी पूर्णतया समर्थ हुए हैं। महादेव की अप्तिा पफिर बहुत से गग्य कुम्भ का ये फटे हुए शिर फा इठाने गये, उसके चयन में सैनापति नै यिस प्रक्षम कर दिया है। जैार ६ उठाये जुर, मिलि के सपन इयेहि गिति गये। गिरी । उगुद्धाय है। दार्टी भुव गगन के चाली अपि चुर भयो । काली भजी इंस्था है कपाळी हाय ६ ॥ इतने बड़े भक्त होने पर भी सेनापति धार्मिक विपषों तक में स्थतन्त्र विचार राते थे। इन्द्रीने प्रथम तरंग में कलि के पाये। फी पूरे भिसर्मने बनाया है। पंचम तरङ्ग में कई धार्मिक विपर्यो