पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४१

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धरान पूवन्तंकृत प्रकरण ।। - नाग के गार्भ आढ़ के लेने से संवन् १८८५ प्रा जाता है, और उपयुक्त महाराज कुमार' के लेख के प्रतिकूल पाता है । जान पहा है कि नानन्त का ईश्वर समझ कर उनके भाई की गना सै निकाल कर आधाज़ में नारी से सात का चैध कराया है । जो छ, यथाथै संवत् १७८५ ही हुँचता है। | जैधिराज ने ग्रन्थ के अादि में अपने शो गैड़ मारा बालकृष्ण का पुग्न लिना है। इन्हेने हमीर से बड़े साह के साथ कहा है और प्रत्येक पटना का बहुत या पार पक्षपूर्वक घन किया है । अपने चन्द्र ढ़ाई का ढंग कुछ कुछ लिये हुए कविता की है। आपकी रचना बहुत सराहनीय है। महर्षि चारमात्रि की सि जान में भी अन्येक घटना विस्तारपूर्वक याथातदय प्रकार से कही है। इस कवि की रचना से जान पड़ता है कि इसने राज- दर देने हैं और नज़र भेट आई का हाल यह भलीभांति जानता है । मदिंमा मंगैज़ का हम्मीर देव से मिलनी इस कथन का प्रमाण ६ । इन्हें अपना कथन दो एक स्पानी के छीड़ धार इतिहास के मतिकुल भी नहीं किया हैं। समस्त पन झा जधिरति नै पद्म में किया हैं, पर यत्र तत्र गढ़ में हो इन्ने बचने कायें की हैं, जो मजभाषा में हैं। इन इन्हें तेष कवि की श्रेणी में समझते हैं। उदाहरः | पुएरीक सुत सुद्धा तासु पद कमद्ध मनाऊँ। विसद रम वर वसन विसद मूग हिय यॐ ॥