पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४४

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मिधन्धुचितार। . [ ५० १७८५ जहाँ श अनुप्रास वा कुछ कुछ प्रय हेर म गया है। इस परिवा में उरए इन्दु बन स पड़ते हैं। एमफा एम पंचाकर फी का में रखेंगे। उदाहरगर्थि इनके कुछ ईन्द नीचे लग्न हैं:- मीना के मद्दल जराफ़ इन पग्दा ६ | इसी पन्नून में सनी विराग १ ।। गुल गु टिम गरः मय पर न ।

  • विधी समानद लाल के दी की ।

तो भद्दताय भु प्रचिन चाहिरन गज़न सुरुचि फ६ घारी अनुराग थी। एत मद की कमरुद्दों प प मजलिस। | शिक्षिर में प्रीपम बनाई पड़ भाग को l ल पर अटका में जलभल लिया । एती पल में ज रडून निज धान है। गंजन सुक बन्दै मा मुफनि तजि । | इस राजपूवा तन्नि तमस शुभम ६ ॥ रानी तर्ज पानी तान कर किरनी शनि अति पिवळे मम आनन में शान हैं। है कार किसान भूप मात्र दिखाने जप्त मरुद्द जाल के वाजत नहीन हैं | । कान कारेमा इनारेमा तपारे ऊँचे प्रति बिन्ध ६ ते सात सुक्रद हैं। | नवल नयाध माँ मम भनि मुनि । आफ्नो प्रग फ६पैचित रहे हैं ।