पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४८

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रि । पूर्वाजंत प्रभए । =' हे फोड किंफर कराल करतारी देत दी। काली किलकर था की तरग ते । कई हरिकेस त पीसन धनीस दै द्वारे मंडलीक गोध गदर उमंग है ॥ चंपति के नंद छत्रसाल अनु कान पर फरकाई भुज और पढ़ाई भैह भंगते । भंग प्रारि मुन्न ते भुजान ते भुजंग हार | रे हर फूदि दारि गरी अरघग वे ॥ ३॥ ज़ में ग्रहलीला, और महाराज जगत सिइ दिग्विजय नामक इनके दो अन्ध लिखे हैं। हरिकेश की कविता में अनुशास का परमेात्तम प्रर्पण हुआ है। ऐसी उमंगोत्पादिनी रचना करने में देश तीन कवियों की छोड़कर कोई भी समर्थ नहीं हुआ है । इनकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। (६६२) दात्री इंसराज श्रीवास्तव कायछ सै० ७८९, में दशा में हुए । इनका ३८ पृष्ठों का सनेहसागर ग्रन्थ मने छत्र- | पूर में देखा, किसमें राधाकृष्ण को ढीला का धन है। इस प्रन्थ- इल में ९, अध्याय है, और इसकी कविता घड़ी ही सरस मैट लुभाषन हैं। हम इनका पद्माकर की अँ यो ने रक्खें। उदाहरण | 1 लानन ललित प्रीति त पागे पुतग्नि इयान निहारे। मानी कमल दलन पर पेठे उदृत न डालि मनबारे ।