पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२४९

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भिभयन्युबिगैरद। [सं० १६५ चुमति चाम चंचल ननि की चितघन अति अनिया । । अति सुनेइ मय प्रेम सरस उत्रि के न त मतचारी ॥ दमकति दिपति दे दामिन सी चमकत चंचल नैना | घट विच पंजन से पेलत उड़ जड़ दि ल नt I लचकति ललित पीठ पर पैनी बिच बिच सुमन सँवारी । दे ताहि मैंर से अमित मना भुर्जन कारा ।। ग्रज में इनके भीड़ जू की पाती, धी जुग़लस्यरूप विरह- पत्रिका, फागतर'गिनी और चुहिरिनळील नामक और प्रन्थ मिले हैं । आप सभी समदाय के चैव विजय सभी के प्य थे। आप पन्नामरेर दयाह, समान ६ र अमानसिह मार्मक महाराजा के यहाँ थे, जिन्हें ने सं० १७८१, से १८१५ तक राज्य किया। मोम-६६ ३) नागदास जी भगवत रसिक जी के शिष्य घृन्दननवाये । अन्य-मानी।। समय--१७९०। विचरण–समें कुल १६१ पद हैं। यद् अन्य हमने दरवार छतर- पुर में देना है। इनकी कविता साधारण श्रेणी की है। समय आँच से मिला है। इस समम के अन्य कविगण । नाम-(६६४) वयो। कविता-शाह–१७५ प पूर्ण ।