पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२६

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मित्रबन्धुयिने । [१० १६८३ र के भी है, क्योंकि इस अन्य में सय स्फुट कम्रिता दी री है। शुभम्ययश अभी इनका एषः भी ग्रन्थ प्रकाशित नहीं अा है। यदि भाषा का फाई भी अमुनि ग्रन्थ प्रपाशित होने की Tग्यता रखता है, और सेनापति के अन्य सघ से पहले नम्वर | भरत में फेशपदास के वन में एम ने संस्टत र मापा- हिंस्य फी प्रणाली का चयन किया है। सेनापति की माया कायसम्यन् प्रथा की है। सेनापति ने ऐसी सञ्जीव, अनूठी, मशी, और मनमानी फबिना की है कि कुछ ही महाकविये के ड़ में समी कवि समाज का इन्द्रे घास्तविक सेनापवि थरयस मानना ही पहता है। सेनापति जी की गणना पविपी की प्रधम कश्रा में है और उस में भी ये महाशय माय सदए हैं। बीसवाँ अध्याय। सेनापति-काल । (१६८१ से १७०६) इस अध्याय में हम सेनापति के समय पालै कधि का वर्णन समयानुसार पारे। [२७६] ध्रुवदास । हमारे मिन बाबू, राधाकृष्णदास ने यल्लभाचार्थी संमदाय एवं भत्तः कचिपे में इतिहास प्राप्त करने में घटुत भम किया या