पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२६३

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मिश्रन्धविनन्द। [५, १८+। तथा गुर। धाले समय में पहुत अच्छा रहा। परिशिष्ट की भांति धे ने भनः भूपगः भर दैव पाटे बाद में भी हुए, पर इस काल में उन्होंने ऐसा पाप मंशन सा लगाया कि प्रायः यह दर्शन ही न दिये । चोर या फो भी इस समय अमाच ही सी राहा ! केपल सुदन फति में राजा सूरजमल के सहारे सुज्ञानचरित्र नामक एफ उत्तम पन्थ वर कविता का रचा। पत्र पद्माकर ने भी हिम्मन बहादुर चिरदावली की रचना की है, पर पाई सराहनीय प्रन्थ ईराने पर भी तादृश आनन्द न देता। जैसा कि ऊपर की जा चुका है, हिन्दी ने नीद माध्यमिक फाल में बहुत सी उन्नति कर दी थी और उस में किसी प्रकार का फापन नहीं रह गया था। फिर भी भूपया देय काल में, है पूरन काल कहा गया है, कवियेने उसे ग्रेनर बनाने का यथासाध्य मया किया। इस प्रयत्न ने मापा-सम्रन्थी अलंकारी की तृद्धि के रूप में प्रकाश पाया। पूर्वाञ्च पाल में इस चैम से लाभ अवश्य हुआ और भाप इतर दे गई, परन्तु इस उत्तरात फल में वटुत से कार्य ने भाच चमकार पर विशेष ध्यान न देकर फर्षिता कामिन या प्रकारे से ही लाद दिया। इस प्रकार इस समय में भाप की उन्नति के साप भाच-दीधिप मी साहित्य में प्राने लगा। कनियां ने ऋगाररस की मेरे मी यहुत अधिक ध्यान दिया, जिससे नायिका भेद पर अन्य लिम्झने की मथा दृढतर दुई। इस प्रयाली के साथ पैति ग्रन्थों का भी प्रचार । बढी ओर आचाता की पूदिई।