पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२६९

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मिश्रबन्धबिना। [सं० ५७॥ राजा साहब के हेयानुसार दामी धौपाप कायम थे। थे एर्गनी प्रतापगद उपनाम अयर के गा माम में इॐ ॐ ।। यह स्थान प्रतापगद ६ दुर्ग से एक भील पर है। दासजी के पिता कृपालदास, पितामह परमानु, प्रपितामह राय रामदास पार वृद्ध प्रपितामह राय नरोत्तमदास थे। नरोत्तमदास के पिता राय पीतमदास थे । दास जी ६ पुष अवधेशराब और पत्र गरीशकर पे, जे अपुत्र मर गये और दास जी का यश समाप्त हो गया। उनकी बिरादरी के लेाग अन तक ट्यगण में रहते हैं । इस पावली में राजा सादच ने धीरभानु का नाम न लिन्न कर राय रामदास के दासजी का पितामद भाना है, परन्तु स्यय दासतो ने वीरभानु । अपना पितामह और राय रामदास की प्र- पितामह लिखा है। अतः हम ने राज्ञी साइब के कयन में इतना अन्नार कर दिया। राजा सीव ने इन बाते के कहने में दालज के फुटुम्बयों से भी इाल पूछ लया है । आपुर शिवसि इजी ने दास के पाँच ऋन्य माने हैं, अर्थात् रस सारांश, छन्दोत्र पिल, कोयनेय, 2 गारनिय घेर धागे बद्दार । परन्तु राजा खादव ने चिहपुराण और दामप्रकाश नामक उनक है। पर अन्य भेड़े, निन्नु वे कहते हैं कि बागवहार न्यभक कई प्रन्थ दृसिजी ने नहीं बनाया । उनको मत है कि शायद रोग नाम प्रकाश की वारदार कहते ह । एम ने भी घायहर कहीं नहीं देया और जान पड़ता है कि राजा साहव का अनुमान यथार्थ है। इनके सत्र प्रन्थ अत्र इमारे पास दसैमान है। दास ने काव्यनिय में लिया है कि समयशी राजा पृथ्व-