पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७

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भूपास] प्लंकृत अकरम् । ४४४ मैर इस पिपय के कितने ही अंध संपादित करके उन नागरी- प्रधारिणी सभा द्वारा वधा अन्य प्रकार से प्रकाशित कराये । उनका यह भ्रम चहुत ही प्रशंसनीय और उनके विचार माननीय ६ 1 इन्दी महाशय ने ध्रुवदास की भक नामावठी के भी नागरी- प्रचारित अधमला में प्रकाशित फरायो । यद्द फेयल० पृ की अंथ है, परंतु टिप्पणी से मुपबंध इत्यादि मिला कर पासू साय नै इलै ८ पृच्चों में सुद्रित किया है। द लै वह के चिंचारों के आधार पर लिया गया है। | दास नै निम्न लिखित छोटे छोटे अंथ निर्माण किये :- पानी, वृन्दाबन्स, सिंगारसत, रसरशाची, इमंजरी, | सिमंजरी, सुमंज, रतिर्मज्ञ, घनदार, रधिहर, सचिहार, नैशाविनेाद, रंगबिना, निधिला, रग हुलास, मानसिलीला, हसिसा, प्रेमळा, प्रेमावली, भजनकुंडली, थायम- पुराण की भाषा, भक्तनामावली, मनसिंगार, जन सत, सामंगल पर, मशिक्षा, प्रीतिचीवन, मानविनैद, व्यालिस बाना, रसायली, मार सभामंडी। इनमें सभामंडली #चतु १६८१ में, दूरसन सत १६८६में, और इसम जरी संवत् १६९६८ में चनी । ॐ प्रधा का उमय नहीं दिया है। राससर्चस्य से विदित देता है कि ध्रुवदास जी रासलीला के बड़े अनुरागी प्य की ग्राम पाले रासधारियों के पड़े में भी थे। भनामावली में ध्रुव दास ने १२३ भक्तों के नाम और उनके कुछ कुछ परिन । बाबू रामदास नै उनमें से प्रत्येक के चिपय धर्मप्रन्यों पर तिहास में है। कुछ मिलता है, उसकी पड़े परिश्रम से इस प्रेय