पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७०

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६८ बाराबंकृत प्रकाए । ५ पति के भाई चूि हिन्दूपतिसिद उनके अधियदाता थे । दास जी ने द्वन्द्व हिन्दू पतिसिंह के नाम पर अपने सर प्रन्थ धनाये हैं, केवल विष्णुपुराण में किसी आश्रयदाता का नाम नहीं दिया है। पूर्वोक्त (जिा साहब ने सामर्थशियां को इतिहास भेजने की भी छुपा की है, जिससे विदित है।ता है कि राजा छत्रधारीत'; के पुत्रों में पृथ्वीपतिसिइ र हिन्पतिसिइ भी थे । इन देने की माता या-नरेश की पुत्री रानी सुजान कुर्वरि थी। राजा पृथ्वोपनि- सिह संवत् १७९१ में गद्दी पर बैठे और संच १८e७ में अर्मद यो चंग का पक्ष लेकर युद्ध करने के कारण दिल्ली के वज़ीर माफ़- दरजंग ने छल से इनका वध किया और प्रतापगढ़ का राज्य का दिनां के वास्ते पत्र हेरगया | इस समय इस राज्य में बड़ा विप्लव रहा मेर न जाने क्या इस संवत् के पीछे दासजी नै केाई पन्ध नहीं अनाय । शायद इसी गड़बड़ में ये भी मार ले गये हैं। दासजी ने इन्दर्गय पिगल में अपना परिचय नल लिमित छन्द द्वारा दिया हैं:- अभिल्लास की सदा सनि । धेश्य निंथ | सन्न र दिन सय ग्राहो सेवा घरचाने । लीमा नई नीचे ज्ञान हलाहल ही है। अंतुर्पत है । फुपा पताल र्निवा सद्दी की खानि ।। सेनापति देव कर शोभा नती के मूप पा भी ईरा हैम सदा दास ही घी जान । अपर दैघ पर अवै यश टे नाउँ सगासन नगघर सीतानाथ कालापानि ॥