पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७१

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  • धनाद् । [4. 18

या कवित्त अन्तर घन में नुषान्त ३ दि। दास्र नाम कुल ग्राम ईि नाम भगति रस मदि । इसे रीति में पढ़ने पर निरंत पता शात हा :- भिघारीदास वापर, यरन बहीवार, भाई धनलाल की, सुत कृपाल दृसि वा, नाती बारमानु को, पन्नाती सास फे, सरप देश, उँगा नार ताथला । श्रौघात काय में एक शाखा पीयार है। | एन्ट्रोय पिगढ़ के अतिरिक्ष, इनके सन्न प्रन्थ सघनै प्राम प्रतापगढ़ के राजा अर्जावर ६ र प्रतापबहादुरसिजा न ही छपवाये ।। दास जी ने केवल विपुराण दिन्द्रपति सि ६ प अर्पित नहीं की हैं और ऐपल इसी के बनने का सच भी नहीं दिया है। इसकी कविता इनके सब अन्यों से विशाल है, अतः जान पड़ता है कि यह इनका प्रथम अन्य ६ मार पैसे समय चला था जब तक कि ये हिन्दूपति के यहां नही गय थे। यह अन्य सङ्गत चिहापुराशा का धनुषाद है। इन्होंने अमरकैश का भी शान्था किया हैं। अतएप जान पड़ता है कि ये महाशय सस्कृत के भी अच्छे पड़ित थे । तव की अवस्था पिपुराय बनाते समय तीस वर्ष से कम न | हुँगी । अनुमान से जान पता है कि पद अन्य सवत् १७८५ के लगभग बना है, से इस हिसाब से दास जी का जन्म काल सवय् १७५५ के इधर उधर होगा। विहुपुराणा रोयल अड़पैनी के ३५ पृष्ठों को एक पृढत अन्य है। इसके बनाने में दो हीन साल से कम न लगे हैं । यह विशेषतया देगा पापाइयों में बना है,