पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७५

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मिभयभुदि । [सं० १०॥! समत भाकाव्य भीमति समझ सुकन्दा ६ । काव्य की उत्तमता में यह स्त्रिया शुगर निय के दसि जी के और सब अंधे से धzतर ६। इसके उदाहरणस्वरूप में एक ऐसा डंदै बैते हैं, जिसमें पांच प्रतीप के उदाहरण है पैर एक छंद भापः पी अत्तमता का मी लिन्नते हैं। चंद कई तिंय आनन । जिनकी मति पाकै धयान से ईरली । आनन यता चंद लई मुख के लग्ने चंद् गुमान घटे अली ॥ दास न अानन सी कदै चंद दुई से मई यह याद न है मली। देसी अनूप चनाप के आनन राशिये के ससि ६ की शब्दा चलीं ॥ अँरियाँ हमारी दई मारी मुधिं वृधि हारी | मैइ नै जुन्यारी दास रहें सत्र काल हैं। कान मई झाने कोई सीपत सपार्ने कान ला भीक जाने प नहीं हैं निज हाल में । प्रेम पगिरह मा मह में उमगि रद्द | ठोक इनि र लगि रद्द वनमाल में। लाम का अंचे कै कुछ धरम पर्चे के | धृथा वैथन संवै ६ भई मगन गुपाल में हो ऋगारनिघ" संवत् १८०७ बैसाम्ब सुदी १३ को समाप्त हुमा । इसमें दास ने नायक, नायिका, उद्दीपन, अनुमाब, सात्विक, एवं विपेग ऋग्गर का कयन किया है। इन्होंने अपन हाय का भी प्रर्थन किया है। आप ने निम्नलियित नायिका को । मी स्यकीया माना है--