पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७६

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दास ] अछरालंकृत प्रकरण । ६६६ थीमामन के भैौन मैं मैन्य भामिनी और। तिनहुके। किपादिमें गनै सुकबि सिरमौर ।। इस मै उदाहरणस्वरूप राजा ययाति की दूसरी पक्षी शर्मिष्ठा का समझना चाहिए। यह समस्त अंध और विशेषतया नखदिन्न हुन ही उत्कटं बना है। घास जी के सप्त अर्थों में यह भेष्ठतम ६। इसका उदागास्वरूप एक छन्द यहाँ त कते हैं। कंजसकेचि गरे र फीच में भीनन चैरि दिया दह नीरन । दास कदै मृगढ़ का उदात्त के इस विये है अन्य गंभीरन ॥ पुस ३ उपमा उपमेय है हैन प निदत ६ कधीरम। घंशन है और उड़ाये दिये इलेके करि' द्वारे अनंग के तौरन है। दास फी भाषा शुद्ध मज़:भापा है। उसमें माथै यिौप हुँचा ३ चैरि भुति फट्स शब्द बहुत कम हैं। अन्य उत्तम कवियों की भांति कुमकी भापा में भी मिल्लिराय घडुत कम अने पाये हैं । इनका अनुग्नास का इष्ट म था परन्तु कहाँ कहीं इनमें उसका यचद्दार भी किया है। इन कथने का दाष्ट्रस्यरूप एक छम लिन्ना जाता हैं। आनन में मुसुकानि मुद्दावनि बैकुरा अँसियानि छई है। मैन सुनेरी मुळे उर जात जकी विधी गति पनि ठई ६ ॥ दास प्रभावले सन्न अंग सुरंग सुवासला लि गई है। चंदमुच तनु पाय भवनै भई तराई आनंदमई है। यत्त स्थान पर होने स्वाभाच्चिकै चन्द्र अच्छे किये हैं, परन्तु इनकी कविता में प्राकृतिक घर्शनी का अभाष सा है। हृदय "पर चाट लगाने पाले भाव भी इनकी कविता में पत्र बन्न पाये